Friday, August 21, 2009

एक सवाल



मेरी भी आँखों में एक ख़वाब पल रहा है ,
सितारों से कल रात ज़ंग हो गयी मेरी ,
ज़हन में हज़ार सवाल उठ रहे है ,
बीते हुए ज़ख्मों का हिसाब चल रहा है ,
छू लूँ जो तुझे तो रोशन चिराग बन जाऊँ,
तमाम ज़िन्दगी तुझ पर निसार कर दूँ और फ़ना हो जाऊँ ,
जाग
रहा हूँ कई सदियों से अब नींद आने को है ,
इस बहरी दुनिया में शायद अपनी आवाज़ भी खो रहा हूँ ,
सवालो के शहर में जवाब का सामान बन
रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल
रहा है |


अनसुनी सी चीखें मेरे जिगर के पार हो रही है ,
ज़ंग और मुफलिसी में मौत का कारोबार हो
रहा है ,
दिमाग खुला रखो सब बहुत समझदार है यहाँ ,
तुम्हारी ज़िन्दगी का ये कैसा व्यापार हो रहा है ,
हिम्मत से सामना करो इसका अब बेखौफ लाचार हो गया है ,
दे दो भिकारी को भीख के वो अब भगवान हो रहा है ,
सच्चाई की मुठ्ठी में विश्वास दम तोड़ रहा है ,
कैसा है ये सिलसिला जो आँखों पे भारी है ,
सपनो की राह में आज रावन ही मदारी है ,
राम को ढूंढें कहाँ हर ओर सवाली है ,
जीने का सबब हमको हलाल कर रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल रहा है |


-बेखौफ

4 comments:

  1. सपनो की राह में आज रावन ही मदारी है ,
    बहुत सुन्दर रचना है बधाई

    ReplyDelete
  2. apne khwab ko badi hi sundar tareeke se panktiyon main utara hai...
    gud wrk

    ReplyDelete
  3. शानदार....अच्छी बात ये है कि इतने सालोंऔर इतना कुछ बदलने के बाद भी तुमने लिखना नहीं छोड़ा....

    ReplyDelete
  4. Luvd what u wrote as "ram ko dhunde har aur sawali hai"....ise par i'd luv to write one of my fav lines.....
    "tulsi Raam ko saadh kar...besudh hokar sove...anhoni honi nahin...honi hove se hove"

    gaur farmiyega sir ji ;)

    ReplyDelete

Search This Blog