यह ब्लाग मेरी नित नये कर्मो की गाथा है | जैसे कल का अंकुर फूटा कुछ ऐसा कि बिल्ली के भाग से छींका टूटा और सर मुडाते ही ओले पड़ गए | आवाज़ को नया आयाम देने का मेरा कोई इरादा नहीं है | आवाज़ बची रहे , बस यही कोशिश जारी है |
Monday, August 17, 2009
एहसास
झूठे है लोग , झूठी है ख्वाहिशें !
एहसान है ये किसी का यह जुगाड़ करके रहते है सब ,
आधी रातों में उठते है और नयन भरमाते है ,
ये राहों की है वीरानियाँ क्यों छुपाते है सब |
कभी लम्हों में जीते है हम कभी सालों में मरते है,
जब आइना देखते है तो क्यों नज़रें चुराते है सब ,
कर लो सारी तैयारीयां कि अब वक़्त नहीं है हमारे पास,
जाने के वक़्त क्यों मुड़ के पास आते है सब |
ना खुद से हारा हूँ कभी और ना जिया हूँ कभी किसी के लिए ,
फिर भी मोहब्बत है मुझे तुमसे यह क्यों कहते है सब ,
आज सारे दर -ओ -दीवार रोशन कर दो कि मनाएंगे हम दिवाली ,
क्या पता ये साथी , ये मौसम , ये नज़ारा कभी कहीं खो न जाएँ सब |
-बेखौफ
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bas ashish sir bas... bahut hi umda... ye to ...bas i don't even have words to express how i feel...it is enough for me to bask in your reflection that i know this man...supreme
ReplyDeleteThis is life
ReplyDeleteWith fakeness all around
But this is YOUR life
There's truth that can be found...
Awesome one from your pen...with reality of life :D
इस भावपूर्ण रचना के लिए आप प्रशंशा के पात्र हैं...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
aapki jitani bhi prasansha ki jaye kam hai ...........atisundar
ReplyDeleteYe ehsas salaamat rahen.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
Great going bro..............keep it up.
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