आज कलम बड़ी उदास है ,
लिखने को कुछ भी नहीं ख़ास है ,
बहे खून का इससे मलाल है ,
आज क्यूँ माँ के सीने में पड़ी दरार है ,
मुझे उस गली के कुत्ते को देख के तरस आती है ,
जिसे देखकर मेरी कलम काप जाती है ,
क्या लिखूं की लिखने को कुछ भी नहीं आज है ,
आज कलम फिर से बड़ी उदास है |
-बेखौफ
जिसे देखकर मेरी कलम काप जाती है ,
क्या लिखूं की लिखने को कुछ भी नहीं आज है ,
आज कलम फिर से बड़ी उदास है |
-बेखौफ
mazaa aaya padh kar....badey hi dino ke baad aapse mulaqat dobara hui....ab to aap mil gaye ho to ab miltein hi rahoge....by the way the maut tu ek kavita hai...is better than awesome....i'll keep a tab on your blog...and please do check out my humble try too at stupendouslysublime.blogspot.com
ReplyDeletebahut umda sir. aap to mere adarsh ho kai maayno mein :)
ReplyDelete"kalam ki syahi sookhi hui si lagti hai
kalpanaaon ki udaanein kuch sustati hui si
aur meri tarah thake huye yeh ped
yeh aasmaan, yeh nadiya aur yeh bujhta diya
Thak Jaao Toh Tham Jana Behtar."
vidrohi khush hua !!!
ReplyDeletekya baat hai sahab ...