Friday, August 21, 2009

एक सवाल



मेरी भी आँखों में एक ख़वाब पल रहा है ,
सितारों से कल रात ज़ंग हो गयी मेरी ,
ज़हन में हज़ार सवाल उठ रहे है ,
बीते हुए ज़ख्मों का हिसाब चल रहा है ,
छू लूँ जो तुझे तो रोशन चिराग बन जाऊँ,
तमाम ज़िन्दगी तुझ पर निसार कर दूँ और फ़ना हो जाऊँ ,
जाग
रहा हूँ कई सदियों से अब नींद आने को है ,
इस बहरी दुनिया में शायद अपनी आवाज़ भी खो रहा हूँ ,
सवालो के शहर में जवाब का सामान बन
रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल
रहा है |


अनसुनी सी चीखें मेरे जिगर के पार हो रही है ,
ज़ंग और मुफलिसी में मौत का कारोबार हो
रहा है ,
दिमाग खुला रखो सब बहुत समझदार है यहाँ ,
तुम्हारी ज़िन्दगी का ये कैसा व्यापार हो रहा है ,
हिम्मत से सामना करो इसका अब बेखौफ लाचार हो गया है ,
दे दो भिकारी को भीख के वो अब भगवान हो रहा है ,
सच्चाई की मुठ्ठी में विश्वास दम तोड़ रहा है ,
कैसा है ये सिलसिला जो आँखों पे भारी है ,
सपनो की राह में आज रावन ही मदारी है ,
राम को ढूंढें कहाँ हर ओर सवाली है ,
जीने का सबब हमको हलाल कर रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल रहा है |


-बेखौफ

Monday, August 17, 2009

एहसास


झूठे है लोग , झूठी है ख्वाहिशें !
एहसान है ये किसी का यह जुगाड़ करके रहते है सब ,
आधी रातों में उठते है और नयन भरमाते है ,
ये राहों की है वीरानियाँ क्यों छुपाते है सब |


कभी लम्हों में जीते है हम कभी सालों में मरते है,
जब आइना देखते है तो क्यों नज़रें चुराते है सब ,
कर लो सारी तैयारीयां कि अब वक़्त नहीं है हमारे पास,
जाने के वक़्त क्यों मुड़ के पास आते है सब |


ना खुद से हारा हूँ कभी और ना जिया हूँ कभी किसी के लिए ,
फिर भी मोहब्बत है मुझे तुमसे यह क्यों कहते है सब ,
आज सारे दर - -दीवार रोशन कर दो कि मनाएंगे हम दिवाली ,
क्या पता ये साथी , ये मौसम , ये नज़ारा कभी कहीं खो जाएँ सब |

-बेखौफ

Saturday, August 15, 2009

कलम



आज कलम बड़ी उदास है ,
लिखने को कुछ भी नहीं ख़ास है ,
बहे खून का इससे मलाल है ,
आज क्यूँ माँ के सीने में पड़ी दरार है ,
मुझे उस गली के कुत्ते को देख के तरस आती है ,
जिसे देखकर मेरी कलम काप जाती है ,
क्या लिखूं की लिखने को कुछ भी नहीं आज है ,
आज कलम फिर से बड़ी उदास है |

-
बेखौफ

आज़ाद....!!




वो मौसम भी अजीब था
वो लोग भी अजीब थे
वो रास्ते भी अजीब थे
वो जज्बे भी अजीब थे
जब निकल पड़े थे
आज़ादी के परवाने
सर पर कफ़न बाँध कर |

आज मुड के देखता हूँ
तो एक लौ जल रही है
और मुझसे पूछ रही है
तुम कौन हो?

तुम वो हो जो १८५७ से मेरे लीए लड़ रहे हो
या तुम वो हो जो डायर की गोली से हताहत थे
या तुम वो हो जो assembly में बम फोड़ आये
या तुम १९४२ में थे?


तुम वो हो जिसे आज माँ की आँखें देखने को बेताब है
तुम वो हो जो हमेशा से यहीं थे , और मेरे थे |


पर एक सवाल है
तुम कौन हो?
क्या तुम आज़ाद हो?
क्या तुम आज़ाद हो?


-बेखौफ

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