Friday, September 24, 2010

कशमकश ...!!



तेरी जुस्तजू में रह गए , तेरी राहों में सिमट गए,
आलीशान महलों में कुछ सवाल उलझे रह गए |

तेरी इबादतों का हुआ असर, वो दो दिन और  ठहर गए,
तूने जितना भी खींचना चाहा, वो हाथों से फिसल गए |

मेरे  दिल में है जो लगी हुई वो आग कैसे बुझा  दूँ मैं ,
वो आये थे उम्र भर के लिए और लम्हों में चले गए |

तेरी बेकरारी का मैं ए बेख़ौफ़ अब  जवाब किस- किस को दूँ ,
जो मिलते गए वो मेरे साथ आगे चल दिए  |

राहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है,
शादाब हो गए है रेगिस्तान के भी  कुछ फलसफे |

है समन्दरो में छुपी  हुई  दास्ताँ कल और आज की,
चलो अब कहीं और जहाँ चल रही हवा चले |

-बेख़ौफ़ 

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