Saturday, May 14, 2011

इस बार हर बार के लिए ...!!





हर बार तुम्हारी याद मेरे दिल में रह जाती है ,
हर बार तुम्हारी कोई बात मेरे मन  में बस जाती  है,
हर बार जब भी मिलता हूँ तुमसे ,
हर बार जब भी कुछ सुनता हूँ तुमसे ,
हर बार यह वक़्त कट जाता है तुम्हारे साथ ,
हर बार तुम्हारी वो तस्वीर रह जाती  है मेरे पास, 
हर बार जब भी यह दिल तस्सली से सोता है ,
हर बार तुम्हारी आवाज़ सुकून दे जाते है मुझे ,
हर बार तुम्हारे पास रुक जाने को जी चाहता है ,
हर बार पर तुमसे दूर मुझे यह वक़्त कर जाता है ,
अबके यूँ मिले हम  कि कोई बंदिश न हो हमारे दरमियाँ ,
इस बार मिल जाएँ हम हर बार के लिए |

--बेख़ौफ़ 

Sunday, April 3, 2011

पुनरावृत्ति



मैं अकेला चल रहा लथपथ पवन के वेग से,
मैं अकेला चल रहा नीर के विश्राम से,
चल रहा अपनी स्मृतियों को अंक में लिए, 
कभी मार्ग से विचलित, कभी संस्मरणों से हतप्रभ,
कभी सागर सा उत्प्लावित, कभी अग्नि सा गंभीर,
कभी सत्य से अनभिज्ञ, कभी विकल्पों पर आश्रित,
कभी  शांत मन का अनावसानी शून्य , कभी असंख्य सांख्यिकीय , 
कभी सूर्य की अनवरत भंगिमा , कभी नीरव सा दिवावसान,
कभी देवी का वरदान, कभी मेरी अगम प्रवित्ति,
जीवन की गणित में मित्रों  का जोड़ व्यर्थ का घटाना,
सफलता का गुणा और नियति  का भाग ,
सबसे मिला सबका सुना और स्वयं में लीन चलता रहा, 
मैं अकेला चल रहा कि उस पार जीवन से मिलूं,
उस पार नए उन्माद वेगों से मिलूं  और जी उठूँ ..||

-बेख़ौफ़ 

Friday, September 24, 2010

कशमकश ...!!



तेरी जुस्तजू में रह गए , तेरी राहों में सिमट गए,
आलीशान महलों में कुछ सवाल उलझे रह गए |

तेरी इबादतों का हुआ असर, वो दो दिन और  ठहर गए,
तूने जितना भी खींचना चाहा, वो हाथों से फिसल गए |

मेरे  दिल में है जो लगी हुई वो आग कैसे बुझा  दूँ मैं ,
वो आये थे उम्र भर के लिए और लम्हों में चले गए |

तेरी बेकरारी का मैं ए बेख़ौफ़ अब  जवाब किस- किस को दूँ ,
जो मिलते गए वो मेरे साथ आगे चल दिए  |

राहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है,
शादाब हो गए है रेगिस्तान के भी  कुछ फलसफे |

है समन्दरो में छुपी  हुई  दास्ताँ कल और आज की,
चलो अब कहीं और जहाँ चल रही हवा चले |

-बेख़ौफ़ 

Sunday, January 24, 2010

कुछ काम अभी बाकी है ...!!


हसरतों की दुनिया में मेरे ख्वाब जी उठे ,
तकदीर को बनाने में सारे रिवाज़ झूठे मिले ,
हौसलों की कमी न की मैंने ,
मुझे कुछ यार अच्छे मिले ,
जब गिरा मैं, तो उठाने वाले हाथ मिले ,
जब मायूस हुआ तो मोहब्बत के जज़्बात मिले ,
जब तोडा दुनिया ने रिश्ता तो माँ की मीठी गोद मिली ,
जब लिखना चाहा तो ग़ालिब के अल्फाज़ मिले ,
तम्मनाओं के उजालों में मंज़र की तलाश बाकी है ,
ज़िन्दगी की इस राह में आगाज़ अभी बाकी है ,
जी रहा हूँ शायद इसीलिए .. कुछ तो अरमान बाकी है ,
अभी आराम कहा ए दोस्तों , बहुत काम अभी बाकी है..|

- बेख़ौफ़

Friday, August 21, 2009

एक सवाल



मेरी भी आँखों में एक ख़वाब पल रहा है ,
सितारों से कल रात ज़ंग हो गयी मेरी ,
ज़हन में हज़ार सवाल उठ रहे है ,
बीते हुए ज़ख्मों का हिसाब चल रहा है ,
छू लूँ जो तुझे तो रोशन चिराग बन जाऊँ,
तमाम ज़िन्दगी तुझ पर निसार कर दूँ और फ़ना हो जाऊँ ,
जाग
रहा हूँ कई सदियों से अब नींद आने को है ,
इस बहरी दुनिया में शायद अपनी आवाज़ भी खो रहा हूँ ,
सवालो के शहर में जवाब का सामान बन
रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल
रहा है |


अनसुनी सी चीखें मेरे जिगर के पार हो रही है ,
ज़ंग और मुफलिसी में मौत का कारोबार हो
रहा है ,
दिमाग खुला रखो सब बहुत समझदार है यहाँ ,
तुम्हारी ज़िन्दगी का ये कैसा व्यापार हो रहा है ,
हिम्मत से सामना करो इसका अब बेखौफ लाचार हो गया है ,
दे दो भिकारी को भीख के वो अब भगवान हो रहा है ,
सच्चाई की मुठ्ठी में विश्वास दम तोड़ रहा है ,
कैसा है ये सिलसिला जो आँखों पे भारी है ,
सपनो की राह में आज रावन ही मदारी है ,
राम को ढूंढें कहाँ हर ओर सवाली है ,
जीने का सबब हमको हलाल कर रहा है ,
मेरी भी आँखों में एक ख्वाब पल रहा है |


-बेखौफ

Monday, August 17, 2009

एहसास


झूठे है लोग , झूठी है ख्वाहिशें !
एहसान है ये किसी का यह जुगाड़ करके रहते है सब ,
आधी रातों में उठते है और नयन भरमाते है ,
ये राहों की है वीरानियाँ क्यों छुपाते है सब |


कभी लम्हों में जीते है हम कभी सालों में मरते है,
जब आइना देखते है तो क्यों नज़रें चुराते है सब ,
कर लो सारी तैयारीयां कि अब वक़्त नहीं है हमारे पास,
जाने के वक़्त क्यों मुड़ के पास आते है सब |


ना खुद से हारा हूँ कभी और ना जिया हूँ कभी किसी के लिए ,
फिर भी मोहब्बत है मुझे तुमसे यह क्यों कहते है सब ,
आज सारे दर - -दीवार रोशन कर दो कि मनाएंगे हम दिवाली ,
क्या पता ये साथी , ये मौसम , ये नज़ारा कभी कहीं खो जाएँ सब |

-बेखौफ

Saturday, August 15, 2009

कलम



आज कलम बड़ी उदास है ,
लिखने को कुछ भी नहीं ख़ास है ,
बहे खून का इससे मलाल है ,
आज क्यूँ माँ के सीने में पड़ी दरार है ,
मुझे उस गली के कुत्ते को देख के तरस आती है ,
जिसे देखकर मेरी कलम काप जाती है ,
क्या लिखूं की लिखने को कुछ भी नहीं आज है ,
आज कलम फिर से बड़ी उदास है |

-
बेखौफ

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