Monday, August 17, 2009

एहसास


झूठे है लोग , झूठी है ख्वाहिशें !
एहसान है ये किसी का यह जुगाड़ करके रहते है सब ,
आधी रातों में उठते है और नयन भरमाते है ,
ये राहों की है वीरानियाँ क्यों छुपाते है सब |


कभी लम्हों में जीते है हम कभी सालों में मरते है,
जब आइना देखते है तो क्यों नज़रें चुराते है सब ,
कर लो सारी तैयारीयां कि अब वक़्त नहीं है हमारे पास,
जाने के वक़्त क्यों मुड़ के पास आते है सब |


ना खुद से हारा हूँ कभी और ना जिया हूँ कभी किसी के लिए ,
फिर भी मोहब्बत है मुझे तुमसे यह क्यों कहते है सब ,
आज सारे दर - -दीवार रोशन कर दो कि मनाएंगे हम दिवाली ,
क्या पता ये साथी , ये मौसम , ये नज़ारा कभी कहीं खो जाएँ सब |

-बेखौफ

6 comments:

  1. bas ashish sir bas... bahut hi umda... ye to ...bas i don't even have words to express how i feel...it is enough for me to bask in your reflection that i know this man...supreme

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  2. This is life
    With fakeness all around
    But this is YOUR life
    There's truth that can be found...

    Awesome one from your pen...with reality of life :D

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  3. इस भावपूर्ण रचना के लिए आप प्रशंशा के पात्र हैं...बधाई...
    नीरज

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  4. aapki jitani bhi prasansha ki jaye kam hai ...........atisundar

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  5. Great going bro..............keep it up.

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