तेरी जुस्तजू में रह गए , तेरी राहों में सिमट गए,
आलीशान महलों में कुछ सवाल उलझे रह गए |
तेरी इबादतों का हुआ असर, वो दो दिन और ठहर गए,
तूने जितना भी खींचना चाहा, वो हाथों से फिसल गए |
मेरे दिल में है जो लगी हुई वो आग कैसे बुझा दूँ मैं ,
वो आये थे उम्र भर के लिए और लम्हों में चले गए |
तेरी बेकरारी का मैं ए बेख़ौफ़ अब जवाब किस- किस को दूँ ,
जो मिलते गए वो मेरे साथ आगे चल दिए |
राहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है,
शादाब हो गए है रेगिस्तान के भी कुछ फलसफे |
है समन्दरो में छुपी हुई दास्ताँ कल और आज की,
चलो अब कहीं और जहाँ चल रही हवा चले |
-बेख़ौफ़
wah bhai wah, sundaram !!!
ReplyDeleteमाशा अल्लाह !!
ReplyDeleteबेख़ौफ़ नायाब तरीके से आपने भावनाओं को उतारा है.....
बहुत दिन से आपकी कलम को इंतज़ार था
Incredible piece of work
ReplyDeleteit is masterful....a very very engaging read....kudos ashish sir
ReplyDeleteराहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है - the most amazing line ... amazing work !!
ReplyDeletearre yaar!! Tum wahan chale jaate ho ....jahan saala humaree train ka station hee nahin padtaa . Feeling sad for myself!!! Faadoo hai yeh! The honesty of the complex thoughts that arise out of simple emotions is beautifully put. :)
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