Friday, September 24, 2010

कशमकश ...!!



तेरी जुस्तजू में रह गए , तेरी राहों में सिमट गए,
आलीशान महलों में कुछ सवाल उलझे रह गए |

तेरी इबादतों का हुआ असर, वो दो दिन और  ठहर गए,
तूने जितना भी खींचना चाहा, वो हाथों से फिसल गए |

मेरे  दिल में है जो लगी हुई वो आग कैसे बुझा  दूँ मैं ,
वो आये थे उम्र भर के लिए और लम्हों में चले गए |

तेरी बेकरारी का मैं ए बेख़ौफ़ अब  जवाब किस- किस को दूँ ,
जो मिलते गए वो मेरे साथ आगे चल दिए  |

राहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है,
शादाब हो गए है रेगिस्तान के भी  कुछ फलसफे |

है समन्दरो में छुपी  हुई  दास्ताँ कल और आज की,
चलो अब कहीं और जहाँ चल रही हवा चले |

-बेख़ौफ़ 

6 comments:

  1. माशा अल्लाह !!
    बेख़ौफ़ नायाब तरीके से आपने भावनाओं को उतारा है.....
    बहुत दिन से आपकी कलम को इंतज़ार था

    ReplyDelete
  2. it is masterful....a very very engaging read....kudos ashish sir

    ReplyDelete
  3. राहों में आज रुक रुक कर हम भी पलट के देखते है - the most amazing line ... amazing work !!

    ReplyDelete
  4. arre yaar!! Tum wahan chale jaate ho ....jahan saala humaree train ka station hee nahin padtaa . Feeling sad for myself!!! Faadoo hai yeh! The honesty of the complex thoughts that arise out of simple emotions is beautifully put. :)

    ReplyDelete

Search This Blog