Sunday, April 3, 2011

पुनरावृत्ति



मैं अकेला चल रहा लथपथ पवन के वेग से,
मैं अकेला चल रहा नीर के विश्राम से,
चल रहा अपनी स्मृतियों को अंक में लिए, 
कभी मार्ग से विचलित, कभी संस्मरणों से हतप्रभ,
कभी सागर सा उत्प्लावित, कभी अग्नि सा गंभीर,
कभी सत्य से अनभिज्ञ, कभी विकल्पों पर आश्रित,
कभी  शांत मन का अनावसानी शून्य , कभी असंख्य सांख्यिकीय , 
कभी सूर्य की अनवरत भंगिमा , कभी नीरव सा दिवावसान,
कभी देवी का वरदान, कभी मेरी अगम प्रवित्ति,
जीवन की गणित में मित्रों  का जोड़ व्यर्थ का घटाना,
सफलता का गुणा और नियति  का भाग ,
सबसे मिला सबका सुना और स्वयं में लीन चलता रहा, 
मैं अकेला चल रहा कि उस पार जीवन से मिलूं,
उस पार नए उन्माद वेगों से मिलूं  और जी उठूँ ..||

-बेख़ौफ़ 

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